बेटी की पुकार
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बेटा बेटी एक समान बता क्यूँ नहीं देते?
जमाने के आँखों से ये पर्दा हटा क्यूँ नहीं देते?
बेटों से कभी कम नहीं है बेटियाँ,
इसे भी बराबरी का दर्जा क्यूँ नहीं देते?
दो दिलों व घरों को जोड़ती है बेटियाँ,
एक बार उसका हक दिला क्यूँ नहीं देते?
लुटा रहे हो प्यार दिन-रात बेटों पर
कुछ बेटियों पर भी प्यार लुटा क्यूँ नहीं देते?
सारी पाबंदियां सिर्फ़ बेटियों पर क्यों,
बेटों को भी हद में रहना सिखा क्यूँ नहीं देते?
सिसक रही है असहाय कोने में बेटियाँ,
जख्मी जिगर को फूल बना क्यूँ नहीं देते?
दहेज का जल्लाद जला रही है बेटियाँ,
ऐसी प्रथा को जड़ से मिटा क्यूँ नहीं देते?
दिन दहाड़े लुट रही है सड़कों पर बेटियाँ
कोई कड़ा कानून बना क्यूँ नहीं देते?
जो बेटियों पर हाथ उठाये मेरे भगवन,
ऐसे हर एक हैवान को सजा क्यूँ नहीं देते?
जो देखता है गंदी बूरी नियत से बेटियाँ,
ऐसे हर आँखों को अंधा बना क्यूँ नहीं देते?
???? —लक्ष्मी सिंह ?☺