बेटी की दासता
कभी औरों के लिए सीखा था जीना।
ग़म मैं भी मुस्कुराना चहां
पर बंदिशों की बेड़ियों में यूं जकड़ गए
मिल सका न सपनों का आसमां
ये है एक बेटी कि दासता।।
जब जन्म हुआ तो न कोई खुशी थी, न हर्ष था
चाहकर भी पापा कि बाहों का झूला न मिल सका
मां की गोद में जाना चाह
पर भाई का था कब्जा
दर्द कितना था इस दिल में ये किसी को न पता
ये है एक बेटी कि दासता।।
पढ़ लिख बनाऊंगी एक नयी पहचान
बस सोचा ही था
पर समाज के दायरों ने कैद कर दिया
लड़की होने की आग कुछ य ऐसी लगी
आंखो की उमंगों को आशुओं ने धो दिया
मिल न सका ख्वाहिशों को आशियाना
दर्द कितना था इस दिल में ये किसी को न पता
ये है एक बेटी कि दासता।।
मौसम ने फिर रुख बदला
मन में संजोया एक सपना
हाथों में लगेगी मेहंदी उठेगी डोली
पर थी ये पल दो पल की खुशियां
दहेज के बाण ने फिर घायल किया
या यूं कहे जलती रही संमा परवाना चला गया
दर्द कितना था इस दिल में ये किसी को न पता ।
ये है एक बेटी कि दासता ।।@
✍️रश्मि गुप्ता@ ray’s Gupta