बेटी का संदेश
माँ तु बड़ी प्यारी है।
तु बहुत भोली-भाली है।
तु मुझे बचपन में गुड़ियाँ बुलाती थी,
तेरे प्यार का यह नाम मुझे
बहुत प्यारा लगता था।
पर माँ एक बात कहूँ तुमसे,
अब न तू मुझे बचपन में
गुड़िया या परी न बुलाना।
पुकारना ही हो प्यार का नाम
तो मुझे झांसी की रानी कहकर पुकारना।
बचपन में माँ मुझे परी की
कहानी न सुनाना।
सुनानी हो कहानी माँ तो
नारी की वीर गाथा सुनाना।
लोरी मैं भी माँ नारी का वीर रस ही सुनाना।
माँ में यह सब इसलिए बोल रही हूँ ,
क्योंकि , तुम मुझे प्यार से
गुड़ियाँ बुलाया करती थी ।
पर माँ जमाने ने मुझे गुड़िया
और परी समझ लिया।
जिसका जब मन हुआ गुडियां समझकर ,
मूझसे खेलने लगा,
मेरे जज्बातों को भी माँ
गुड़िया की भाँति बेजान कर दिया।
किसी ने खेला, किसी ने तोड़ा,
किसी ने मुझको फेक दिया।
गुड़िया समझकर माँ जिसको
जब मन चाहा उसी
ने मुझको मसल दिया।
माँ मै कभी जिन्दा लाश बन कर रह गई ,
और कभी सच मैं लाश बन गई।
माँ मुझे परी भी न बुलाना
सब परी की तरह मुझे
पाने की चाह रखते हैं
मैं अब उनकी चाहत का
हिस्सा नहीं बनना चाहती है।
पर माँ अब मुझे ऐसे नही जीना है।
अब माँ मुझे भी अपने लिए लड़ना है।
माँ अब तुम्हारी यह जिम्मेदारी है
मुझे बचपन से इतना मजबूत कर दो
ताकि मैं अपने लिए हमेशा लड़ सकूँ।
और अपने पर होने वाले
शोषण को रोक सकूँ।
~अनामिका