बेटी का पत्र माँ के नाम (भाग २)
ससुराल की पहली सुबह
अलार्म की घंटी बजी
माँ बंद करो, माँ बंद करो
अध की नींद मे रोज की तरह,
मैं तुमसे कहने लगी।
अध पलक आँखो तुम्हे ढूंढा
पर तुम मुझे नहीं दिखी
न बंद होता देख अलार्म
मैं खुद ही जाग गई।
तब झट याद आया माँ
मैं अब मैके में नहीं
ससुराल मे हूँ आ गई।
पुरा बदन काँप गया माँ
डर सी हो चली।
कितने ही प्रश्न मन में
एक साथ उमड़ पड़ी।
झट बिस्तर छोड़ माँ
नित्य कार्यों से निपट
लोगो के पास जाकर
खड़ी हो गई।
फिर सब से पूछा!
और चाय बनाने चली गई।
चाय बनाते हुए ,
तेरी याद आ रही थी।
मैने कब तुम्हे अपने हाथों से
चाय बनाकर पिलाया था,
याद नही आ रही थी।
क्योंकि मेरे उठने से पहले
तुम चाय लेकर आ जाती थी।
लेकिन आज तेरी यह बेटी
अपनी गृहस्थी सम्भालने जा रही थी।
अपने इस नए घर के तौर-तरीके
अपनाने जा रही थी।
सब कुछ था यहाँ माँ
बस तेरा प्यार और
तेरे यहाँ न होने का एहसास
मुझे रूलाए जा रही थी।
~अनामिका