“बेटी और कोख”
बलात्कार की बढती घटना से त्रस्त एक मां की अपनी कोख मे पल रही बेटी के लिये संवेदना जाहिर करती मेरी कविता..!!
“बेटी और कोख”
आ बेटी तुझपे आज मै कोख अपनी अर्पण कर दूं.,.!!
जीते जी ही तेरे मै कोख मे तेरा तर्पण कर दूं…..!!
आ बेटी तुझपे आज मै कोख अपनी अर्पण कर दूं..!!
मुझे पता है मुझे इल्म है मै निर्लज कातिल कहलाऊंगी..!!
पी लुंगी हर घुंट खुन का और दंष हर तानों का सह जाऊंगी..!!
पर जो दर्द मिलेगा तुझको इस बाहरी दुनिया मे,वो दर्द न मै सह पाऊंगी..l
तुझे नही पता इस दुनिया का बेटी,जब तेरा पहला कदम दुनिया मे आयेगा..
बाहर बैठा कई भेड़ीया तुझे देख कर लाड़ टपकायेगा..!!
ना देखेगा कोई उम्र तुम्हारी और ना ही तुम्हारी कोमलता
बस अपनी काम-पिपासा के खातिर तेरी वोटि वोटि नोच खा जायेगा..!!!
लूट रही थी जब इज्जत द्रौपदी की तब कृष्ण बचाने आयें थे..पर आज के इस दानवों की दुनिया मे ना कोई कृष्ण आयेगा..
जब आज पिता ही बन बैठा है कंश और भाई बन बैठा दुर्योधन..इस नामर्दों की वस्ती मे तब कौन बचाने आयेगा तुम्हारा स्त्रीधन..?
आ बेटी तुझपे आज मै अपनी कोख अर्पण कर दूं..
जीते जि ही तेरा आज कोख मे तेरा तर्पण कर दूं…!!!
कितना अच्छा होता गर बेटी कोख मे ही पल बढ लेती..
ममता का दीवार खड़ी कर मां आंचल का छत कर देती…
माफ कर देना मुझको अभी तुम बेटी .
पर फिर से तुम्हे इस दुनिया मे लाऊंगी..
जब ये मूर्ख दरिन्दे बेटी का महत्व समझ जायेंगे..
एक बेटी ही तो औरत बनती है और बनती है जननी,
नही रहेगी बेटी जब इस दुनिया मे तो किसे देंगे ये मां की उपमा,और बहन-बीवी किसे बनायेंगे..?
मर्दों की इस दुनिया मे क्या वो ही बच्चें जनने आयेंगे.?
आ बेटी तुझपे आज मै अपनी कोख अर्पण कर दूं..!!
आ बेटी तुझपे आज मै अपनी कोख अर्पण कर दूं..!!
विनोद सिन्हा “सुदामा”