बेटियों का मुस्तकबिल
मैं बेटियों पंख देकर उड़ना उनको शिखा रहा हूं
ये कब तक बच्चियों के मुस्तकबिक का शोषण होता रहेगा
समाज कब तक बेटियों के नसीब कलम से अपनी लिखता रहेगा
मैं खुद तप कर दूसरों को रोशनी में ला रहा हूं
समाज तेरे कलम की स्याही हमारे मुस्तकबिल पर नही चलने वाली
तू जिद को अपनी उठा के रखदे
मैं खालिद खान तुझको बता रहा हूं
मैं पंख देकर बेटियों उड़ना उनको सिखा रहा हूं
ये हुकूमते कोरिया अब नही चलने वाली
समाज तू भी हक मुस्तकबिल का दे
मैं खालिद खान तुझको बता रहा हूं
मैं बच्चियों को पंख देकर उड़ना उनको सीखा रहा हूं
बुलंदियों की बेटियों के क्यू रह में तुम अटक रहे हो
ओ बादशाह मेरी फरियाद सुन लो
मैं तुमसे रूहदास कर रहा हूं
मैं बेटियों को पंख देकर उड़ना उनको सीखा रहा हूं
खालिद खान