बेटियों का ब्याह / जुआ
विवाह किसी लड़की के लिए ,
किसी जुए से कम नहीं।
फल जाए तो खुशकिस्मती ,
ना फले तो उससे बड़ा कोई गम नहीं ।
बड़ी खुशी से बाजे गाजे के साथ घर लाते है ,
और बड़ा अपनापन प्रारंभ में दिखाते है ,
मगर हकीकत में कोई अपना नहीं।
भला मां बाप से जायदा प्यार कौन दे सकता है ?
भाई बहन से बड़ा कोई सगा भी नही ।
वहां रिश्तों को सींचने हेतु मशक्कत करनी पड़ती है
और मगर फिर भी होती कामयाब नहीं।
खुद बेटी वाले होकर भी किसी बेटी को यातना देना ,
समझते एक माता पिता का दर्द नहीं।
जब सयानी होकर विवाह करने पर इतना तनाव ,
तो एक अधपकी कली के बाल विवाह पर ,
क्यों करते फिक्र नहीं।
सयानी बिटिया तो फिर भी आवाज उठा सकती है ,
अन्याय पर ।
एक छोटी बच्ची को तो दुनियादारी की समझ होती नही ।
वोह कैसे उठा सकती होगी आवाज अपने हक के लिए ,
जहां रहते हो वहशी , इंसान वहां रहते नहीं।
अतः अच्छा है देश में बाल विवाह खत्म हो गया ,
और अभी बचना चाहिए इसका निशान भी नही।
अपितु विवाह के पश्चात भी होनी चाहिए ,
ससुराल वालों पर निगरानी ।
लड़की की माता पिता और स्वजनों को होना चाहिए ,
किसी भी कीमत पर बेफिक्र नहीं।
अब पुरानी उक्तियां छोड़ो!
नहीं होती लड़की शादी के बाद भी पराई ,
ससुराल से निकलेगी अब उसकी अर्थी नहीं।
बेटी ब्याही है कोई उससे रिश्ता नही टूटा,
उसकी एक आह पर दौड़कर आना अभिभावकों ,
का फर्ज है ।
क्यों की वोह आखिर आपका खून है पराई नही ।
बाल विवाह करना पाप है,
मगर बिना जांच पड़ताल के बेटी ब्याह देना किसी
गुनाह से कम नहीं।