बेटियों का जीवन_एक समर– गीत
है समर एक जीवन सभी के लिए,
लड़ता वो है जिसे हार भाती नहीं।
एक समर में खड़ी बेटियां भी रहीं,
हर समय जूझतीं जो समय से रहीं।
थीं जो अद्भुत निशानी खुशी की कभी,
वक्त के साथ देखो बड़ी हो गयी।
है समर एक जीवन सभी के लिए।
लड़ता वो है जिसे हार भाती नहीं।।
घर की नन्ही सी प्यारी परी जो कभी,
घर में रौनक लुटाती बड़ी हो गई।
वो जो आंसू खुशी के थे गम में बहे,
बचपना लेके अब तो समय चल दिया।
छोटी सी चोट पर भी जो रोती कभी,
घाव शीने में लेकर वो अब हंस रही।
है समर एक जीवन सभी के लिए।
लड़ता वो है जिसे हार भाती नहीं।।
सोचकर के की अपनों से हारी हूं मैं,
वो समर हर घड़ी यूं ही लड़ती रही।
फिर भी अपनों ने अपना ही समझा नहीं,
हर पराए को अपना ही करती रही।
दो–दो घर को बसा के भी रोती रही,
बेटी सब कुछ लुटाकर भी खुश ना रही।
है समर एक जीवन सभी के लिए,
लड़ता वो है जिसे हार भाती नहीं।
एक समर में खड़ी बेटियां भी रहीं,
हर समय जूझतीं जो समय से रहीं।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
(ललितपर, उत्तर–प्रदेश)