बेटियों ! अब तुम जागो
न क्रोध न संवेदना बस केवल घृणा…….
अब तो आँसू भी सूख गए आँखों से| संवेदना भी शांत हो गई हृदय से | आखिर क्या करे? रोज-रोज सुबह-सुबह किसी भी अख़बारों के हर पन्ने पर बस यही जो लिखा दिखता है……या फिर टीवी के हर न्यूज़ चैनलों पर यही देखने सुनने को जो मिलता है कि फ़लाना शहर में गैंगरेप, चिलाना शहर में सामूहिक दुष्कर्म में, यहाँ परिवार के ही एक सदस्य द्वारा की गई छेड़खानी, वहाँ दोस्तों द्वारा ही किया सेक्स उत्पीड़न | आखिर किसी भी चीज की सीमा होती है.. आँखों में आँसू आने की या फिर बदलते समय की झूठी फिजूली रट की | या फिर वैसे समाज, वैसे परिवार की जहाँ ऐसे हैवानों को साँस लेने का जगह मिलता रहा है| या फिर वैसे माँ के गर्भ का, जिससे ऐसे कुलक्षण संतान पैदा ले रहा हो |
आखिर कब तक आप भी आँसू बहाओगे? कब तक सिर्फ संवेदना प्रकट करोगे? आज जब दुनिया में संवेदना नाम का कोई शब्द ही न रहा तो आपकी संवेदना को आखिर समझेगा ही कौन? आज जब दुनिया आक्रोश का, जिद्दी व जूनूनी का हो गया है, मनुष्य के रूप में हैवानों का हो गया है तो फिर हम या आप क्यों नहीं खुद इसका संहारक बन पा रहे हैं? क्यों न वो माँ अपने ही उस कोख का हत्यारा बन पा रही हैं? जिस कोख से कोई संतान नहीं बल्कि जिस्म का भूखा कोई जंगली भेड़िया पैदा ले लिया हो | क्यों न वो समाज ही ऐसे नामर्दों का सफाया कर पा रहा, जहाँ उसके समाज में उसकी रक्षा करने के जिगर रखने वाले कोई शेर नहीं बल्कि जिन्दे मांस का लोथड़ा समझ मुँह में पानी भरने वाले गीदड़ का जन्म हुआ है |
अब न तो यहाँ कोई राम हैं जो महिलाओं के सम्मान को अपनी वीरता से दुष्कर्मियों को मार बचाने की क्षमता रखता हो और न कोई कृष्ण है जो नामर्द भरी सभा में एक स्त्री की आबरू की रक्षा कर पाए |
हे! हमारे माँ भारती की पुत्री अब तुम्हें ही अपना वंश, अपना पूर्वज, अपना इतिहास मुड़कर देखना होगा| अपनी शक्ति, अपनी क्षमता स्वत: पहचाननी होगी| अब कोई ज़ामवंद भी नहीं है जो तुम्हारे अंदर की छिपी शक्ति का तुमको आभाष करा सके| अपना रूप, अपना स्वरूप खुद याद करना होगा कि आखिर तुम ही जगदम्बा, तुम ही काली, तुम ही भवानी हो जो अपनी शक्तियों से दानवों का संहार कर देवताओ की भी रक्षा करती आई हो |
इसलिए हे! वीरपुत्री अब तुम स्वत: जगो और दुनिया से अपनी रक्षा की आस लगाए बगैर खुद महिसासुरमरदिनी से बलात्कारिमर्दनी भी बनो, तभी इस दुनिया में एक आजाद साँस ले सकोगी |
राहुल कुमार विद्यार्थी
08/12/2019