बेटियां
कहते हैं बेटियां होती हैं पराया धन, जो सदा पास नहीं रहती
वो बेटियां जो घर की धरोहर और दो कुलों की मर्यादा हैं
वो बेटियां तो कभी मन से भी पराई नहीं होतीं.
पितृकुल के संस्कारों को सहेजती, पतिकुल की आन-बान को संभालती
अपने आंसुओं को सबसे छिपाती, सदा मुस्कुराहट का गहना पहनती हैं
वो बेटियां भला पराई कैसे हो सकती हैं.
बेटियां जो मां का दर्द समझती हैं, उसकी सीख को पल्लू में बांध
पतिगृह में आते ही संस्कारों की पोटली खोल ,अचानक बच्ची से बड़ी बन जाती हैं.
वो बेटियां आखिर पराई क्यूं कहलाती हैं
कभी बेटियों से पूछ कर देखो, पराया शब्द कितना दर्द देता है
पुत्र वंशबेल और पुत्री पराया धन ,यह विभेद कितना दंश देता है
पूछती हूं मैं खुद से यह प्रश्न, कि क्या हम सचमुच शिक्षित हो गए हैं
या शिक्षा की आड़ में रूढ़ियों से जकड़े, अभी भी परंपराओं की सलीब ढो रहे हैं.