बेटियां
मां तेरे गर्भ का मलवा नहीं हूं मैं,
जाने क्यूं मिटाने पर तुले हो। दो चार बूंद भर क्षीर की प्यास मेरी,
उसे भी बचाने पर तुले हो।। मां तेरे गर्भ का………………..,
तुझे भी जना होगा जननी ने,।
उनको क्यूं डुबाने पर तुले हो। आ ही गई घर तुम्हारा क्या बिगरेगा,
नवसृजन के आघात पर तुले हो।।
मां तेरे गर्भ का…………………..,।
कूल की मान मर्यादा सलामत रहेगी,
मुझ पे एतबार तो कर।
कोपल हूं जीस सिरजन हार का,
उनका सम्मान तो कर।। मां तेरे गर्भ का…………………….,
गर हूं मैं सूत्र तो सूत्राधार कौन ?
जाने क्यूं बुझाने पर तुले हो।
चार निवाले का ही शर्त रहा गर,
मुझे ही क्यूं मिटाने पर तुले हो।।
मां तेरे गर्भ का…………………….,। अजीब अजाब तेरे अदा में दिखती है,
अंसार बेशर्म से हुए है।
अरे अब हमें मार ही दोगे ना!
क्या ख़ाक करने पर तुले हो।।
मां तेरे गर्भ का…. ………………..,।
स्वरचित:-सुशील कुमार सिंह “प्रभात”