बेटियां
उतर आता है चांद जमीं पर, तभी घर में आती हैं बेटियां,
ढुंढता है खुदा ख़ुद पाकीजा घर,तभी घर में आती हैं बेटियां।
हो घर आंगन को चिड़ीयों सा चहकना, तभी घर में आती हैं बेटियां,
बेरंग सी जिंदगी को हो फूलों सा महकना, तभी घर में आती हैं बेटियां।
दो दो कुल की हो लाज बचानी , तभी घर में आती हैं बेटियां,
अनजान रिश्तों की हो कद्र निभानी, तभी घर में आती हैं बेटियां।
धन नहीं, दौलत नहीं,सामान नहीं, ब्यापार नहीं,
बहुत सिर्फ काम करने की मशीन तो नहीं।
गर लेना हो पिता की दुआं, ख़ुदा की रहमत,
तो,घर में फ़िर बहु नहीं,ले आना तुम किसी की बेटियां।