बेटियां
कहते हैं, खानदान का ताज होती हैं बेटियां।
फिर क्यूँ अपनों के ही प्यार को मोहताज होती है बेटियां।
नहीं देते हम उन्हें हक़ थोडा सा भी जीने के लिए।
खुली किताब होकर भी राज होती हैं बेटियां।
पर वो कहते हैं ना खानदान का ताज होती हैं बेटियां।।
आँखों में उनके आँसू भर दिए हैं हमने।
सोचते हैं चुप रहेंगी क्योंकि घर की लाज होती हैं बेटियां।
बस झूठ कहते हैं खानदान का ताज होती हैं बेटियां।।
सांस भी नहीं लेने देते उन्हें मार देते हैं गर्भ में।
वो जिनके लिए बेटे रेशमी वस्त्र और दाद में खाज होती हैं बेटियां।
हम बस कहते हैं खानदान का ताज होती हैं बेटियां।।
सदियों से उन्हें जीने ना दिया अब तो उन्हें उड़ने दो।
होंगे बेटे कल के साथी गर जीवन में आज होती हैं बेटियां।
तभी कह पाओगे खानदान का ताज होती हैं बेटियां।
खानदान का ताज होती हैं बेटियां।।