बेटियां
बेटियां है अनमोल,
नहीं इनको तू तोल।
बेटे से बढकर ही,
ये करती रखवाली है।।
माँ की सहेली है,
पिता की चिड़कोलि है।
भाई के लिये तो जैसे,
दुआओं की थाली है।।
क्यों है कुलदीपक की चाह,
भूली क्यों है गृह लक्ष्मी माँ।
बेटी भरती है भंडार जैसे,
लक्ष्मी संग दिवाली है।।
क्यों है उसके संशय,
पुरुष प्रधान क्यों है मंतव्य।
क्या युद्ध के हालात में भी,
सुनी नहीं रानी लक्ष्मी की थाति है।।
बेटी से चलता है कुल,
फिर भी करते हो भूल।
क्या बेटियों के बिना,
बहुओ की कल्पना की जाती है।।
बेटियों को तू इतना समझ,
संसार की दिव्य सत्ता समझ।
चाँद नहीं ये सूरज है,
दुर्गा जैसी बेटियों से,
ये धरा थर्राई है।।
बेटियां है अनमोल,
इनको तू ना तोल।
बेटे से बढकर ये ,
करती रखवाली है।।