बेटियां
(१)
खिलतीं धूप हैं बेटियां, हों सबकी दरकार.
बिन बेटी सब सून है, सजा धजा घरबार.
सजा धजा घरबार, सदा बेटी से मिलती.
महके घर संसार, फूल बनकर जब खिलतीं.
(२)
कभी खेलाता मै उसे, कभी वो मुझे खेलाती है.
मै खिलौने देता उसको, वो खिलौना बन जाती है.
थक कर दफ्तर से आता, राह ताकती, बिटिया पाता.
बन जादू की एक पुडिया, तरो-ताजगी भर जाती है.
(३)
एक आँगन में पलती बेटी,दूजे में जा कर जलती है.
ऐसे रस्मों रिवाजों से,कैसे ये दुनिया चलती है.
दिन भर बक-बक करने वाली,,हँसने और हँसाने वाली.
बनकर बहु ससुरालों में, बिन धागे, होठों को सिलती है.
मुकेश श्रीवास्तव
९९५३७०७४१२