बेटियां
बेटियां
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हर आंगन में खिले कलियॉ
हॅसती रहे मुस्काती रहे ।
हर आंगन गूंजे स्वर इनका।
यों राग खुशी के गाती रहे।
हर आंगन मे चिड़ियों की तरह।
दिन रात यूं ही चहचहाती रहे ।
कभी परी बन कभी श्री रूप में।
समृद्बियां बरसाती रहे।
ये अपने आर्शी व स्नेह सलिल से।
हर बगिया जग की दमकाती रहें।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर