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18 Jan 2017 · 1 min read

“बेटियां”

इस जहां कि हर खुशी की राज होती हैं बेटियां,
मां पिता के दुख मे सदा, हमराज होती हैं बेटियां,

सौ दर्द हो दिल में मगर,उफतक नहीं करती कभी,
सदियों से दो घर कि इज्जत,ढोती आयी है बेटियां,

ये वो चिड़ियाँ है, जिसे खुद कि पंख है, परवाज है ,
पर पिजड़े के मोह मे, इसे खुद ही कैद रहना चाह है,

सच है यहाँ, हर कदम पर त्याग कर रही हैं बेटियां,
सौहार्द कि पर्याय बन, हर घर कि आधार होती बेटियां,

जन्म से ही इस जहां में, रिश्तों कि,अजान बनती बेटियां,
बेटी, बहन, पत्नी, मां, ऱिश्तों कि पहचान बनती बेटियां,

बेटी रहती जब तलक, पिता कि सम्मान ढोती बेटियां,
बहन बन,भाइ के लिये, त्याग कि प्रतिमान बनती बेटियां,

पत्नी बन, पति के सपनों का,महल तैयार करती बेटियां,
मां बन ,एक शिशु का ,समुचित संसार गढती बेटियां,

सच कहूं तो, बेटी के बीना, ये जहां एक शुन्य है,
जीवन पर्यन्त रिश्तों के, शुन्य का आधार बनती बेटियां,

मैं हतप्रभ हूं, परेशान हूं, हैरान हूं. हलकान हूं ,
क्यूं जहां मे अब तलक ,कोख में मर रही हैं बेटियां,

बेटी के बीना, दुनिया कि, कल्पना निराधार है ,
फिर भी ,कोख में मारना , क्या मानवीय व्यवहार है?

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