बेटियां बोझ नहीं होती
बेटों सा हर फर्ज़ तो वो भी निभा जाती है
दुख दर्द हर तकलीफ में वो भी साथ देती है
फिर भी दुनियां वाले उन्हें पराया कहते फिरते है
इन दुनियां वालों को बतलाए कोई
कि बेटियां पराई नहीं होती है.
भेदभाव, अत्याचार सब कुछ वो सह जाती है
संघर्ष, त्याग और समर्पण की वो जीती जागती मिसाल है
फिर भी दुनियां वाले उसकी इज़्ज़त नहीं करते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां सहनशीलता की मूरत है.
मां बाप की सेवा, सास ससुर का ध्यान रखती है
दो घरों को एक गठरी में वो जोड़े रखती है
फिर भी दुनियां वाले उसे तंज कसते रहते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां बेटों सी जिम्मेदार होती है.
मां बाप का अभिमान, परिवार का वो सम्मान है
सृष्टि की उत्पत्ति का वो प्रारंभिक बीज है
फिर भी दुनियां वाले बिना गलती उसे दुत्कारते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां से ही जीवन जन्नत है.
घर आंगन को खुशियों से गुलजार वो करती है
हर रिश्ते पर लाड़ प्यार लूटा परिवार को संवारती है
फिर भी व्यक्तिगत शत्रुता में बहन बेटियां बेइज्जत की जाती है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां देश का अभिमान होती है.
बेटों की तरह बेटियां भी घर का दीपक होती है
असीम दुलार पाने की वो हकदार होती है
फिर भी दुनियां वाले उसे वो सम्मान नहीं देते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां अनमोल रतन होती है.
मुस्कुराकर अपमान का हर घुट को वो पी जाती है
ज़माने की जंजीरों में जकड़े हुए भी वो आगे बढ़ती जाती है
फिर भी दुनियां वाले उसे कमजोर कहते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां कमज़ोर नहीं होती है.
हर छेत्र में अपना परचम वो भी लहरा रही है
अवसर मिले तो बेटों सा इतिहास वो भी गढ़ जाती है
फिर भी दुनियां वाले उन्हें बोझ समझते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां मां बाप पर बोझ नहीं होती है.
एक बहु की चाहत यूं तो हर कोई रखता है
पर कोख में ही अस्तित्व बेटी का मिटा देते है
देकर बेटों को ज्यादा महत्व बेटी को कमतर समझते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां घर का सौभाग्य होती है.
लक्ष्मी-सरस्वती की चाह यूं तो सभी रखते है
पर दुआ कोई भी इक बेटी की नहीं करता है
पुरुष प्रधान इस जग में सभी बेटे की चाह में जीते है
इन दुनियां वालों को समझाए कोई
कि बेटियां आने वाला कल है.
– सुमन मीना (अदिति)