बेटियां / बेटे
बेटियां फ़र्ज़ निभाती रहीं
बेटे हक़ जताते रहे ,
बेटियां दुःख-दर्द संभालती रहीं
बेटे वसीयतें बनवाते रहे ,
बेटियां अपना हक़ भाई को दे देती रहीं
बेटे भाई के आधे को भी हड़पते रहे ,
बेटियां पिता की मां बनती रहीं
बेटे बस लड़के ही बनते रहे ,
बेटियां घर-बाहर संभालती रहीं
बेटे बस बाहर में ही उलझे रहे ,
बेटियां पेट कटवा कर भी रसोई में खड़ी रहीं
बेटे ज़रा से जुक़ाम में बिस्तर पर पड़े रहे ,
बेटियां विधवा होकर सफेद होतीं रहीं
बेटे रंडवा होकर लाल सेहरा बांधते रहे ,
बेटियां घर-ख़ानदान की नींव कहलाती रहीं
बेटे परंपराओं के शिखर बनकर इठलाते रहे ,
बेटियां अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो कहती रहीं
बेटे हर बार बस और बस लड़के का जनम मांगते रहे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )