कुमुद के दोहे
करता है अटखेलियां, भ्रमर कली के संग |
फूल कली के साथ, फैले मधुर सुगंध||
हिय के उपवन में प्रभो,बनकर रहो समीर|
माली बनके कर विनय,मन भी पाए धीर||
पावन कन्या दान है ,दीजै पुत्री ब्याह|
निर्वाह करे जो सदा, पाए पुण्य अथाह।।
आन तिरंगे की बढ़ी ,सकल विश्व में आज|
भारत विकसित हो रहा, उन्नत सभी समाज।
आया मास बसंत का, झूमें नाचे गात।
सुरभि पवन बह रही,फागुन सम सौगात||
दुर्गा काली शारदा,नारी ही नव रूप |
पूजा अर्चन कीजिए , दीप जला अरु धूप ||
नारी का पूजन कर यहाँ , रहते देव प्रसन्न|
सूना होता वह नगर, जहाँ नारियां खिन्न |
नारी होती हैं सदा, ममता की पहचान|
पाते जीवन नर सभी ,बनते नित्य महान |
नारी देती है सदा ,जग में नर का साथ|
भार्या माता अरु बहन,चलती संगहि पाथ।
सागर ममता की यहीं ,दया मोह भंडार |
ईश्वर भी नत हो सभी,पाकर प्यार अपार ||
ममता देखो मात की, है कितनी अनमोल।
नौ माह रखे गर्भ में , मानो प्रभु का खोल।।
नारी का सम्मान रख, जिस घर पूजा जाय ।
लाज रखे जो दूध की , वही सुपुत्र कहाय ।।
मॉ ,बेटी ,बहु,औ बहन, ये ममता की है खान ।
बेटी से गौरव देश का, इनसे देश महान।।
अतुल धरोहर ईश की, रक्खें इनका मोल।
इनके हित में सत कामना, घोल अमृत घोल।।
डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मावर्मा कुमुदिनी