बेटियां ( क्यों ओ बाबुल )
बेटियां ( क्यों ओ बाबुल )
क्या खता है ओ बाबुल मेरी
जो मुझे कोख में ही मार देते हो
क्या मैं तेरा अंश नहीं ?
या मुझे यूँही दुत्कार देते हो
बेटियां तो बाबुल का अरमां
हुआ करती हैं ….
बाबुल के संस्कारों की पहचान
हुआ करती हैं ………
क्यों फिर इतना क्रूर अंजाम दिया
करते हो ………….
बेटियां तो बाबुल का आँगन
महकाती हैं ……….
दुःख में बाबुल का संबल बन जाती हैं
फिर किस बात की सजा सुनाते हो ….
क्यों ओ बाबुल मेरी पहचान मिटाते हो
वख्त से पहले चिर निंद्रा में सुलाते हो
मैं एक लड़की हूँ क्या यह मेरा अभिशाप है
तभी तो मेरा अजन्मा शरीर तड़प रहा यहाँ आज है
क्या सिर्फ लड़की होना मेरा गुनाह था
जो जीने के अधिकार ही मुझ से छीन लिए…
अरे मूर्खो यह भी न सोचा हमें मारोगे
तो माँ , बेटियां , बहन ,बीबी कहाँ से पाओगे
अपने वंश चलाने की परम्पराओ को कैसे
आगे ले जाओगे बेटियो को नहीं बचाओगे तो
सृष्टि का अंत एक दिन नज़दीक ले आओगे …
मिशा