बेटियां अमृत की बूंद……….
बेटियां अमृत की बूंद……
पैदाइश हुई बेटी की ,मन में उठी हल्की सी तरंग,
खुशी से झनझनाहट हुई, जैसे फूलों पर डोले भृंग।
हृदय में एक लहर उठी ,मानो नभ में उड़ती पतंग,
जन्नत जैसी खुशी मिली, ज्यूं मस्ती में बजे मृदंग।।
आंखें रही थी मूंद। बेटियां अमृत की बूंद……..
जिम्मेवार पिता बना मैं, था अल्हड़ मस्त मस्ताना,
बदल गई जिंदगी मेरी, बदला बदला लगा जमाना।
कानों में गूंजी किलकारी, जब परी का हुआ आना,
झूम उठा था तन मन मेरा, रागी गाए ज्यूं कोई गाना।।
छठ गई थी धूंध । बेटियां अमृत की बूंद…….
प्रसुता पत्नी ने निज नैनों से, करी जब मुझसे बात,
भाव विभोर नैना नीर बहा, हुआ सब कंपित गात।
अजब गजब की छटा थी,सरसराहट से हिलते पात,
सावन महीने के मौसम में, हो रही ज्यूं सीसरती बरसात।
नयन गई थी चूंध। बेटियां अमृत की बूंद……..
रोते बेटियों की पैदाइश पर, उनके जीवन को धिक्कार,
इन बेटियों से ही जग सारा,घर में भरे खुशियों के भंडार।
जो गर्भ में मारते नवजातों को, दंडित करें उनको सरकार,
लख लाहनता दे सत् पालक, होवै दशा ज्यूं नैया मझदार।।
गला जाए उनका रूंद। बेटियां अमृत की बूंद …….
सतपाल चौहान।
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