बेटियाँ
श्रृंगार रस में जब जब सजती हैं बेटियाँ
बड़ी नाजुक सी कोमल सी दिखती हैं बेटियाँ
वक्त आये तो दुर्गा रुप भी धरती हैं बेटियाँ
माँ बाप की जब ढाल बनती हैं बेटियाँ
दिलों की इक इक तार से जुड़ती हैं बेटियाँ
इक इक साँस में प्यार भरती हैं बेटियाँ
मूर्ख हैं जो समझते हैं बेटी बोझ कन्धों का
वक्त पड़े तो बोझ उठाती हैं बेटियाँ
वारिस समाज ने बनाया है बेटों को
पर दर्द समेटने आखिर आती हैं बेटियाँ