“बेटियाँ
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बेटियाँ”
हर घरों की जान सी होती हैं बेटियाँ
कुल की कूलिनता पर सोती हैं बेटियाँ
माँ की कोंख पावन करती हैं बेटियाँ
आँगन में मुस्कान सी होती हैं बेटियाँ॥
अपनी गली सिसककर रोती हैं बेटियाँ
सौदा नहीं! बाजार में बिकती हैं बेटियाँ
तानों की बौछार भी सहती हैं बेटियाँ
खुद कलेजा थामकर चलती हैं बेटियाँ॥
बाप की औलाद ही होती हैं बेटियाँ
गर्भ में इन्शान को ढोती है बेटियाँ
कलाई थाम भाई की रोती हैं बेटियाँ
हवस तेरा शिकार बन जाती हैं बेटियाँ॥
इज्जत के पहरेदार! लुट जाती है बेटियाँ
नंगे बदन अखबार छप जाती है बेटियाँ
पता बता, किस घर नहीं होती हैं बेटियाँ
अभागों के दरबार मर जाती हैं बेटियाँ॥
माँ-बहन बन संसार भी रचती हैं बेटियाँ
सुहागन का श्रृंगार भी करती हैं बेटियाँ
सिंदूर की ज्वाला में जलती हैं बेटियाँ
धिक्कार है! बेकफन भी टंगती हैं बेटियाँ॥
महातम मिश्र,गौतम गोरखपुरी