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16 Jan 2017 · 1 min read

बेटियाँ

बेटियाँ

डगर-डगर चली बिटियाँ
गुनगुनाते हुए लोक गीत
जो उसने सीखे थे माँ से
रच-बस चुके थे सांसो में
हर त्योहारों के मीठे गीत
सखिया बन जाती कोरस
स्वर मुखरित हो उठते तो
कोयल कूक हो जाती फीकी
ठहर जाते लोगो के भी पग
कह उठते कितना अच्छा गाती
बेटियां अब कम हो जाने से
हो गये है त्यौहार भी फीके
गीत होने लगे आँगन से गुम
बेटे त्योहारों पर गीत बजाते
सुनने को अब पग कहा रुक पाते
लोक गीतों और बेटियों को
जब सब मिलकर बचायेंगे
सुने आँगन फिर सज जायेंगे
सुर करेंगे हवाओ से दोस्ती
बोल कानो में मिश्री घोल जायेंगे
संजय वर्मा ‘दृष्टि ”
125, शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला -धार(म प्र )
9893070756

Language: Hindi
336 Views
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