बेटियाँ
बेटियाँ
————
बेटियाँ आती हैं
शीतल मंद बयार की तरह
बिखेर देती है सर्वत्र
अपने साथ लाई सुमनों की सुगंध
बेटियाँ आती हैं
गर्मी की बारिश की तरह
भिगो देती हैं तन-मन
कुछ पलों में ही
बेटियाँ आती हैं
जब कुछ दिन रहने को
रसोई से उठती रहती है सुगंध
नित नए व्यंजनों की,
बेटियाँ आती हैं
बातों के गट्ठर संग लेकर
चलते रहते हैं गप्पों के सिलसिले
देर रात तक चाय कॉफी
चिप्स, मूँगफली के साथ,
बेटियाँ आती हैं
तो लौट आता है भाई का बचपन
जोमैटो वालों की लग जाती है मौज
रोज होते रहते हैं ऑनलाइन ऑर्डर
पास्ता, पिज़्ज़ा और खाने के,
बेटियाँ आती हैं
अपना पर्स/जूट बैग लेकर
निकालती है उसमें से
ये माँ, ये पापा और ये भाई के लिए
छलक-छलक जाती हैं आँखें पापा की
उमड़-उमड़ आते हैं माँ की आँखों में आँसू
सोचकर…..अब की गई जाने फिर कब आएगी,
बरबस याद आ जाते हैं वो दिन
जब यही सब किया करते थे
माँ और पापा उनके लिए,
बेटियाँ आती हैं
जब अपने बच्चों को लेकर
मचा रहता है शोरगुल
होती रहती है धमाचौकड़ी
चलती रहती हैं उनकी फरमाइशें
नानी-नाना और मामा से
बेटियाँ कहती रहती हैं
परेशान कर दिया इन बच्चों ने
पर बच्चे रहते हैं मस्त अपनी धींगामस्ती में,
बेटियाँ चली जाती हैं
जब वापस अपने घर
लेकर चली जाती हैं सारी रौनक
अपने साथ अपने मायके की
बच्चों की हलचल
उनकी नटखट शैतानियाँ
कई-कई दिनों तक आती रहती हैं याद
माँ और पापा सोचते रहते हैं
बेटियाँ जल्दी-जल्दी क्यों नहीं आती…..??????
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई