बेटियाँ भयमुक्त हो घर से निकलनी चाहिए
आज अपने देश की हालत बदलनी चाहिए
बेटियॉ भयमुक्त हो घर से निकलनी चाहिए
देख लो लुटती हुईं जो आबरू को तुम कभी
ऑख मे अंगार सी ज्वाला तो’ जलनी चाहिए
लुट रहीं अस्मत हज़ारो कुर्सियो की छॉव मे
दामिनी के देश मे ये रात ढलनी चाहिए
जब दिखें जुल्मी निगाहें बेंधती ऑचल को’ई
मार देने की उन्हें हसरत मचलनी चाहिए
नाश हो उन जालिमो का छेड़ते जो बेटियॉ
पाक दामन बेटियॉ खुश हो उछलनी चाहिए
दे सकें उनको हसीं माहौल कुछ तो खुशनुमा
सोच मे अपनी सदा चाहत ये’ पलनी चाहिए
चैन से घूमें हमारी लाड़ली फिर बिन डरे
वो हवा बदलाव की अब आज चलनी चाहिए
©
शरद कश्यप