बेटा
आज हम सभी जीवन के साथ अपने मन भाव में संतान सुख की लालसा रखते हैं जो भी हो परंतु पुत्र या बेटे की कामना हमारे मन में एक जागृति रहती है क्योंकि हम बेटी को तो पराया धन मानते हैं। क्योंकि ऐसा पुराणों में और हमारी भी मान्यता है। जीवन के सच में हम सभी भेदभाव और मनभाव में सच तो यही समझते हैं कि पुत्र ही अगर पिता माता की मृत्यु पर अग्नि दे। हम कुदरत को भूल जाते हैं जो की पांच तत्व धरती जल वायु अग्नि और आकाश तो बेकार है क्योंकि हम बिना अग्नि और बिना व्यू और बिना जल और धरती और आकाश के बिना भी मोक्ष पा सकते हैं सच तो यह है कि हमने जन्म लिया है हमारे मन भावों में पुत्र को स्वार्थ के लिए हम चाहते हैं श्रवण कुमार के माता-पिता को मोक्ष नहीं मिला क्या? ऐसा हम केवल सोचते हैं परंतु जीवन में पांच तत्वों का ही महत्व और बेटा या बेटी तो केवल मृत्यु संस्कार में एक निमित्त मात्र है और कुदरत तो सब काम स्वयं ही करती है अगर हम तुलसीदास जी की एक कहानी पढ़े तब हमें मालूम चलेगा कि वह सांप को रस्सी समझकर पत्नी से दीवार फांद कर लालसा आकर्षण ले आया था तब उनकी पत्नी ने कहा था कि ऐसी मोह माया भी न हो तब ही तुलसी दास जी ने काफी रचनाएं और ग्रंथ लिखे। और महान बने ।और तभी हम सभी के मन विचार और सोच कि मोक्ष बेटे से मिलता है। जीवन की विडंबना है की हम सभी बेटा बेटी में भेद फर्क मानते हैं बस आज की कहानी का शीर्षक हम आज्ञाकारी बेटा पढ़ते हैं।
इलाहाबाद में एक परिवार था शर्मा का परिवार जिसमें 6 पुत्री पर एक पुत्र था 6 पुत्री सब बड़ी थी और पुत्र सबसे छोटा था पुत्री को लालन पालन में रामनाथ शर्मा की धन संपत्ति का पता ही नहीं लगता था और दिन बीती गई सभी पुत्रियां जवान हो गई। उनका छोटा बेटा सोनू भी बड़ा हो गया बस पुत्रियों के बड़ बड़ा करने में रामनाथ शर्मा जी का देहांत हो गया। माता रानी भी पति की मृत्यु के बाद वह जवान बेटियों के साथ चिंता में रहने लगती हैं। और बेटा सोनू भी बहनों के रिश्तों के लिए परेशान रहता था। वह भी पिता के देहात मन को एकाग्र करता और हिम्मत बटोर कर अपनी छह बहनों के लिए सोचता था।
बस हम सभी जानते हैं कि घर अंधेर देर नहीं क्योंकि हम सभी लोग जानते हैं कि जो जन्म लेता है वह मरता भी है जीवन के सच में हम सभी आज्ञाकारी बेटा एक कल्पना और सच के साथ हम सभी बस, हम सभी जीवन में कुदरत को भूल जाते हैं कि हम सब भी ईश्वर की संतान है और इतिहास उठाकर देखें जिसने जन्म लिया है उसको पालने वाला ईश्वर होता है बस हम सांसारिक मोह माया में अपना कर्म और अपने रिश्ते धर्म निभाते हैं अगर ऐसा ना होता तो जीवन में जन्म के समय ही हम बड़े हो जाते और ना मृत्यु का भय रहता। बस रानी छह बेटियों की मां और सोनू छः बहनों का भाई उसकी चिंता और परेशानी भी ठीक थी क्योंकि जमाना आजकल सहयोग नहीं करता हैं। सोनू भी बहनों के रिश्ते के लिए कहीं ना कहीं भटकता रहता था कहते हैं उसके यहां देर है अंधेर नहीं यह कहावत हर इंसान के लिए सच है क्योंकि हम सभी अपने-अपने कर्मों का लेखा पहले से ही लिखा कर आते है। और बस यही हम भूल जाते हैं हम केवल संसार में जन्म लेने के बाद एक दूसरे से स्वार्थ फरेब छल कपट में लगे रहते हैं और ईश्वर का स्मरण तो हम अपने डर और कर्म के कारण करते हैं। वैसे तो सच तो यही परंतु कहानी है और हम कल्पना के साथ कहानी पढ़ रहे हैं। सांसारिक मोह माया में हम सभी जानते हैं रिश्ते नाते और समाज सभी एक मोह माया का रूप है जितना जिसका नाता उसका जीवन उतना और बस मृत्यु पर किसी का भी बस नहीं है साथ ही साथ हमारे अपने भाग्य पर भी हमें पता नहीं है कि कब कहां बदल जाए इसलिए तू कहते हैं जब ऊपर वाला देता हैं तो छप्पर फाड़ कर देता है। इसी कहावत के साथ-साथ परिवार से मिलता है जहां उसके परिवार में छह पुत्र होते है। सोनू तो अपने माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र होता है साथ ही जो सोनू परिवार ढूंढता है अपनी बहनों की विवाह के लिए वह 6 भी अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बेटे हैं। आज के समाज में आज्ञाकारी बेटा होना बहुत ही मुश्किल और कठिन है परंतु जीवन का एक सच भी है हमारे कारण और हमारे धर्म हमारे साथ हमें फल की प्राप्ति देते है। और सोनू अपनी मां रानी को बताता है कि मां अब हमारी चिंता दूर हो जाएगी। मेरी 6 बहनों का एक साथ एक ही घर में एक ही मंडप के नीचे विवाह हो जाएगा। यह सुनकर रानी भी बहुत खुश होती है और ईश्वर को धन्यवाद देती है प्रभु आपने हमारी लॉज रख लीं। और सोनू की 6 बहनों को रिश्ता पक्का करने के लिए जीवन लाल और उसके छह आज्ञाकारी बेटे है रानी की छह बेटियों को विवाह करने एक साधारण रीति रिवाज से कर अपने गांव ले आते हैं। रानी अपने आज्ञाकारी बेटे सोनू के साथ गंगा नहाने चली जाती हैं। और जीवन में आज्ञाकारी बेटे सोनू से कहती हैं बेटा अब तुम भी मेरे जीते जी अपना विवाह भी कर लें। और सोनू भी हां कहकर अपनी मां रानी के साथ गंगा नहाने का शुभ कार्य करते हैं।
आज्ञाकारी बेटा होना भी एक गर्व की बात है और हम सभी अपने अपने जीवन में अपने कर्म फल या कर्म प्रधानता के सच में जीवन यापन में सुख समृद्धि और दुख भोगते हैं। जीवनके सच में आज्ञाकारी बेटा सच जीवन के सच में हकीकत और हम सभी जानते हैं कि बस यही हमारी कहानी आज्ञाकारी बेटा में हम सभी ने जीवनशैली के साथ उतार चढ़ाव के साथ सुखद अंत देखा या पढ़ा। आजकल आज्ञाकारी बेटा होना बहुत जरूरी हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र