बेटा दामाद
” बाबू जी मुझे रिटायर हुए तीन साल हो गये मेरी पेंशन अभी तक नही बनी बाबू जी बडी परेशानी में हूँ।”
रामलाल हाथ जोड़ कर पेन्शन प्रकरण डील करने बाबू हरीश के आगे गिडगिडा रहा था।
लेकिन बाबू उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा था। जिनसे पैसों के लेनदेन की बात हो गयी थी उनके कैस निपटा कर कमरे से बाहर आ गया ।
रामलाल असहाय सा देखता रहा ।
आखिर वह बड़े अधिकारी के पास जाने लगा लेकिन उसे रोक दिया ।
शाम को रामलाल घर गया लेकिन
उस के चेहरे पर खामोशी छाई हुई थी
वह कोने में जा कर बैठ गया , अभी संगीता की शादी की तैयारी भी करना है पेंशन और बाकी पैसा नही मिला तो कैसे काम
होगा ?
तभी संगीता आयी और दस हजार रूपये रामलाल को देते हुए कहा :
” कल यह पैसे बाबू को दे देना इतनी रिश्वत वह मान्ग रहा है ना ।”
रामलाल ने संगीता को देखते हुए कहा :
” बेटी इतने पैसे कहाँ से लाई एक महिने बाद तेरी शादी
होनी है ?”
तभी बाहर से रामलाल का होने वाला दामाद परेश अंदर आया और बोला :
” बाबूजी आप जैसा सोच रहे है वैसा कुछ नही है । एक दिन संगीता मुझे मिली लेकिन हमेशा खिलखिलाने वाली संगीता उस दिन एकदम खामोश थी वह तो कुछ बता नही रही थी लेकिन बहुत जोर देने पर उसने बताया तब मैने ही उसे यह पैसे दिये है अब कल यह पैसे बाबू को देने बाद जब आपका काम हो जाऐगा तब उस पर आगे कार्रवाही करवाई जाऐगी और हाँ आप चिंता मत करिऐ मुझे सिर्फ संगीता चाहिये बिल्कुल सादी शादी होगी अभी आपकी दो बेटियाँ और है उनका भी ध्यान रखना है ।”
रामलाल की खामोशी मुस्कुराहट में बदल गयी थी ।
वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्चना कर रहा था सभी को परेश जैसा बेटा मिले ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल