बेटवो तऽ बसेला दूर देश में
खाली बिटिये ले नाहीं एगो त्याग करे,
बेटवो तऽ बसेला दूर देश में।
छूटे नइहर केहू के तऽ ससुरा मिले,
केहू तनहे खटेला दूर देश में।
घरवा के सुख छोड़ि रोज ढहनाये,
होखते सेआन लइका चलि दे कमाये।
जेकरे हँसले से घरवा में रौनक रहे,
उहे गुमसुम रहेला दूर देश में।
खाली बिटिये ले नाहीं एगो त्याग करे,
बेटवो तऽ बसेला दूर देश में।।
माई के अँचरा के छाँहें सुते वाला,
जा के परदेशे में रोज कुम्हिलाला।
बाटे सुकुमार बाकिर पसेना ओकर,
रोज तर तर गिरेला दूर देश में।
खाली बिटिये ले नाहीं एगो त्याग करे,
बेटवो तऽ बसेला दूर देश में।।
कान्हें उठाई सगरो बोझा ढोवेला,
मर्द के आँखि नाहीं मनवे रोवेला।
कहे केहू से पीर नाहीं आपन कबो,
दुख केतनो सहेला दूर देश में।
खाली बिटिये ले नाहीं एगो त्याग करे,
बेटवो तऽ बसेला दूर देश में।।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 03/07/2022