बेजुबान तस्वीर
बेज़ुबां होती कहाँ तस्वीर है।
बोलती तस्वीर की तहरीर है।
सोच ना कमज़ोर औरत को कभी
फूल सी नाज़ुक मगर शम़शीर है।
आज हिम्मत कर ज़रा औ तोड़ दे
बेबसी की पाँव जो ज़ंजीर है।
आसमां किसको मिला पूरा कभी
पर बनी तद़बीर से तक़दीर है।
क्या कहें क्या क्या सहा है इश्क में
आँख मेरे दर्द की तफ़्सीर है।
साथ पूरा था अधूरा ही सही
याद तेरी बस मेरी जागीर है।
दे दिया जो भी था मेरे पास में
हाँ यही ‘नीलम’ अलग तासीर है।
नीलम शर्मा ✍️