–बेजुबान का दर्द —
नहीं समझ पाया कभी कोई
उस बेजुबान का दर्द।,
जो कराह के बता देता है
न जाने किस की समझ में आये
वो इंसान ही अलग होता है !!
उस परिंदे की उड़ान सब के
मन को भाति है , नभ में
कौन सा दर्द समेटे हुए उड़ा जा रहा है आसमां में
पता नहीं किसी को उस के दर्द का एहसास कैसे होता है !!
किस के तीर का निशाना हुआ
कितना वो परिंदा जख्मी हुआ
किस से जाकर कहेगा दुःख अपना
उस दुःख को कोई समझ जाय
ऐसा इंसान बस आला होता है !!
सुबह परिंदों की कल कल
सब की सुबह में सकूं भर देती है
रात भर किस दर्द से वो तड़पा होगा
कितना करहा होगा अपने जख्म से
शायद उस दर्द को किसी ने तो समझा होता है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ