“बेज़ारे-तग़ाफ़ुल”
यूँ बहुत कुछ है भले, उसको सुनाने के लिए,
गीत भी इक लिखा है, रूबरू गाने के लिए।
मुझसे वो माँग भी कोई कभी तो रख देता,
मैं तो तैयार था, नखरे भी, उठाने के लिए।
नसीब, हर किसी का एक सा, होता कब है,
तरस गया हूँ उसकी इक झलक पाने के लिए।
मुझमें अख़लाक़ की कमी नहीं रही यारा,
सर ये हाज़िर है, उसके दर पे झुकाने के लिए।
एक मुद्दत से हूँ, बेज़ारे-तग़ाफ़ुल “आशा”,
अश्क़ पीने के लिए हैं तो, ग़म खाने के लिए..!
बेज़ारे-तग़ाफ़ुल # (प्रेयसी के द्वारा किए गए अतिशय) उपेक्षा पूर्ण रवैये से क्षुब्ध, annoyed due to (extremely) neglectful attitude (of the beloved)