बेचैन स्मृतियां
एक अरसा बीत गया
शून्य में निहारते हुए
मैं कब शून्य बन गया
पता ही नही चला
अब तो एक वर्ष और बीत गया
नए साल भी पुराने हो जायेंगे
स्वयं को सहेजते समेटते
ये वर्ष भी व्यतीत हो जायेगा
किंतु मैं रह जाऊंगा वैसा ही
असुलझा सा, बिखरा सा
तेरी स्मृतियों की उलझी
बेल से लिपटा
जिसकी शाखाएं इतनी पुष्ट है
कि मुझे मुक्त ही नही होने देता
सुनो नए साल के कोहरों के पहर
तुम मेरी स्मृतियों का कुछ अंश
साथ लिए जाओ ना ताकि मैं
अपने ह्रदय को रिक्त कर सकूं
तेरी बेचैन करती स्मृतियों से…
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स्मृतियां