बेचैन कागज
बेचैन कागज
दर्द मेरा कागज पर थोक के भाव बिकता रहा, लेकिन मैं बेचैन था जो रातभर लिखता रहा, छू रहे थे तब सभी बुलंदियां आसमान की, मैं सितारों के बीच चांद की तरह छिपता रहा, दरखत होता तो कब का टूट कर गिर गया होता, मैं था नाजूक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा, बदला यहां लोगों ने रंग अपने-अपने लिबास से, रंग मेरा भी निखरा पर मैं मेहंदी की तरह पीसता रहा, जिनको जल्दी थी वो बढ़ चले मंजिल की ओर, मैं वहीं पर समुन्द्र से राज गहराई के सिखता रहा, मैं था आसमान जिसने सितारों को चमकने दिया, सितारों ने आसमान से दगा कर प्रियतमा धरती को चमका दिया।
Dr.Meenu Poonia