*बेचारे लेखक का सम्मान (हास्य व्यंग्य)*
बेचारे लेखक का सम्मान (हास्य व्यंग्य)
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जितने लोग भी संसार में चतुर हैं, उन सबको पता है कि आजकल सम्मान का मतलब अस्सी रुपए का शॉल और चालीस रुपए का सम्मान-पत्र होता है। किसी के भी ऊपर एक सौ बीस रुपए खर्च करके आप उसका सम्मान कर सकते हैं। आयोजक बजट के हिसाब से दो, चार या कई बार दस-बीस लोगों को भी सम्मानित कर देते हैं। जिसको सम्मानित किया जाता है वह क्योंकि लेखक होता है, अतः संवेदनशील प्राणी होता है। जब उससे कहा जाता है कि हम आपको सम्मानित करना चाहते हैं तब उसका ध्यान मात्र एक सौ बीस रुपए के खर्च की तरफ नहीं जाता। वह स्वयं को सम्मानित होते हुए देखना अपने जीवन की एक अमूल्य निधि समझता है। वह इसे अनमोल वस्तु मानता है। उसकी समझ में ही नहीं आता कि आयोजक उसे चार घंटे बिठाकर सिर्फ एक सौ बीस रुपया खर्च करना चाहते हैं। दिहाड़ी का मजदूर भी एक सौ बीस रुपए में चार घंटे बैठने के लिए नहीं मिलेगा। लेकिन लेखक की नजर में क्योंकि सम्मान ग्रहण करना जीवन की अनमोल वस्तु होती है; वह अत्यंत भावुक भाव-मुद्रा में चार घंटे बैठा रहता है। सम्मान प्रदान करने में चार घंटे नहीं लगते, लेकिन आयोजक सम्मानित लेखक को समय से दस मिनट पहले बुलाते हैं। कहते हैं -“आपके मंच पर बैठाना है। आपका सम्मान होना है । अतः आपको समय पर आना ही पड़ेगा।”
जैसा कि आमतौर पर होता है, आयोजन के ठीक समय पर बैनर लगना शुरू होता है। अगर कुर्सियां आ गई हैं तो उनकी धूल साफ करके बिछाने का कार्य होता है । कई बार कुर्सियां आयोजन के ठीक समय पर टेलीफोन से तकादा करके टेंटवाले से मंगवाई जाती है। अनेक बार माइक की समस्या आती है। कार्यक्रम रुका रहता है। कई बार जब तक सारे सम्मानित व्यक्ति एक साथ इकट्ठा न हो जाऍं, तब तक कार्यक्रम रुका रहता है।
सबसे ज्यादा कार्यक्रम इस कारण से देर होता है कि समारोह के अध्यक्ष महोदय देर से पधारते हैं। उनका इंतजार करना आयोजकों की विवशता होती है। अनेक बार आयोजन का सारा खर्चा अध्यक्ष जी के भारी भरकम व्यक्तित्व से ही व्यय होता है। कई बार अध्यक्ष जी स्वयं में इतना भारी-भरकम व्यक्तित्व होते हैं कि उनके बगैर आयोजन एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता। कारण कुछ भी हो, आयोजन एक घंटे विलम्ब से पहले शुरू नहीं होता। दो घंटे विलंब से शुरू होना भी कोई असामान्य बात नहीं होती। शुरू होने के बाद भी आधे घंटे तक अध्यक्ष और मुख्य अतिथि आदि को माल्यार्पण चलता रहता है। जिस व्यक्ति के कर-कमल से फूलमाला अध्यक्ष जी को पहनाई जाती है, उसके कर-कमल भी धन्य हो जाते हैं और अध्यक्ष जी की गर्दन भी धन्य हो जाती है। धन्य करने और कराने में जब ज्यादा देर लगती है, तो कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाता है।
जिस बेचारे लेखक को सम्मानित करना होता है उसकी हैसियत समाज में सबसे निकली सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति के समान होती है। लेखक की क्या आमदनी और क्या हैसियत ? लिखने के कारण उसे सम्मानित भले ही कर दिया जाए लेकिन लिखने में रखा क्या है? -ऐसा चतुर लोग खूब जानते हैं। इसलिए लेखक मंच पर बैठा हुआ भी हाशिए पर पड़े हुए व्यक्ति के समान अपेक्षित रहता है।
घंटों इंतजार के बाद जब कार्यक्रम समाप्ति की ओर होता है और मुश्किल से जितने लोग मंच पर बैठे होते हैं उससे भी कम लोग सामने श्रोताओं के रूप में उपस्थित रह जाते हैं; तब जाकर लेखन का सम्मान किया जाता है अर्थात उनके गले में अस्सी रुपए का शॉल और चालीस रुपए का सम्मान-पत्र थमा दिया जाता है।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451