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28 Sep 2022 · 2 min read

*बेचारा पोस्टकार्ड (लघु कथा)*

बेचारा पोस्टकार्ड (लघु कथा)
_________________________
आज अचानक पचास साल पुराने एक पोस्टकार्ड से मुलाकात हो गई । हमने हाल-चाल पूछा तो कहने लगा “हमारा महत्व तो संग्रहालय में रखने लायक हो गया है । पोस्टकार्ड का उपयोग अब मोबाइल के जमाने में कौन करता है ?”
इतना कहकर वह पचास साल पुराना पोस्टकार्ड अतीत की मधुर स्मृतियों में खो गया ।
हमने कुरेद कर उसके इतिहास के बारे में जानकारी की, तो उत्साहित होकरउसने बताया “पहले तो हर काम के लिए हमारा ही उपयोग होता था। किसी को अपनी कुशलता बतानी हो या दूसरों की कुशलता पूछनी हो, तो पोस्टकार्ड लिखते थे । दो दिन में पहुॅंच जाता था। उसी दिन दूसरी तरफ से भी पोस्टकार्ड पर लिख कर जवाब डाल दिया जाता था । दो दिन जवाब आने में लगते थे ।”
हमने पूछा “जैसे आजकल हम मोबाइल पर संदेश भेजते हैं और पलट कर उसका उत्तर आ जाता है, तो क्या पहले इस काम के लिए डाकिया और पोस्टकार्ड का प्रयोग होता था ?”
इस पर उस पुराने पोस्टकार्ड ने बताया-” जब हाथ में पोस्टकार्ड आता था, तो पाने वाले की ऑंखें चमक उठती थीं। डाकिया देखते ही उसके मन में हजारों उत्सुकताऍं जन्म लेने लगती थीं। सबके घर में दस-बीस पोस्टकार्ड अलमारी में सहेज कर रखे जाते थे, ताकि जब जरूरत हो प्रयोग में लाए जा सकेंं। हर गली-मोहल्ले के नुक्कड़ पर एक लेटर-बॉक्स हुआ करता था, जो प्रत्येक व्यक्ति के सुख-दुख का साथी होता था। रोजाना लेटर-बॉक्स चिट्ठियों से भर जाता था । ज्यादातर पोस्टकार्ड ही होते थे । अब न पोस्टकार्ड रहे, न लेटर बॉक्स, न पुराना जमाना ! “-इतना कहकर वह पुराना पोस्टकार्ड सूनी ऑंखों से आसमान की ओर देखने लगा। हमारे मुॅंह से निकल गया -“बेचारा पोस्टकार्ड”
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
311 Views
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