बेचारा जमीर ( रूह की मौत )
कहां है ,है भी या नहीं ,
इसकी भनक भी लगी नहीं ।
मरा है या जिंदा उसकी ,
कोई खबर ही मिली नहीं ।
मार ही डाला होगा उसे ,
तभी तुम में इंसानियत नहीं।
कितना कराहा होगा , रोया होगा ,
उसकी सिसकियां भी सुनी नहीं ।
कहां दफन कर के आ गए उसे?,
खुदा को भी उसका पता मिला नहीं ।
पता होता तो तुम्हारा वजूद ही मिटा देता,
तुम्हें संभलने का एक भी मौका देता नहीं ।
बेचारा जमीर !! दे रहा है सदा अब भी खुदा को ,
सुनेगा जरूर कभी न कभी तो ,
अपने अंश की पुकार को अनदेखा
वो कर सकता नहीं ।
सुन रे! इंसान , तू बस अपनी खैर मना,
ओहोहो! मैने कुछ गलत कह दिया ,माफ करना !
इंसान तो तू रहा ही नहीं ।