बेघर हैं श्री राम , अवध पति क्यों कर बेघर
बेघर हैं श्री राम , अवध पति क्यों कर बेघर ?
माँ भारती के लाल माता सीता की संताने हैं। माता सीता ने अपने सम्पूर्ण जीवन में हमेशा दुख का सामना किया । हमारी माताओं –बहनों का जीवन भी कष्टों में गुजरता रहा है , उन्होने कष्टों में जीना सीख लिया है । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने बुराइयों पर विजय पाकर अच्छाइयों को विजय पथ पर अग्रसर किया । यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है ।श्री राम आज भी मर्यादा में बंधे न्याय की प्रतीक्षा में हैं । संविधान के प्रणेता श्री राम आज भी संवैधानिक सीमाओं में बंध कर तम्बू में प्रहरियों के मध्य विराम कर रहे हैं । न्याय की प्रतीक्षा में यदि श्री राम अश्रु पूरित चक्षुओं से माँ भारती की तरफ निहारते तो शायद माँ भारती का हृदय पिघल जाता , किन्तु , माँ भारती उदासीन हैं । न्याय की देवी अच्छाई और बुराई में से बुराई को प्राथमिकता देती है । बुराई का अट्टहास हमारे हृदय को दहलाने के लिए पर्याप्त है । न्याय व्यवस्था इन बुराइयों का निपटारा करे या अच्छाइयों का , जो सहिष्णु हैं , मर्यादित हैं । बुराइयों को खुला छोड़ ने से कानून व्यवस्था पंगु हो सकती है , आज हर तरफ बुराइयों का साम्राज्य है , हर तरफ न्याय की पुकार है । न्याय बुराइयों से निपटने में व्यस्त है , अच्छाइयाँ सीमित दायरे में सिमट कर रह गईं हैं , उसके ऊपर किसी का ध्यान नहीं है । आंखे पथरा गयी , प्रतीक्षा करते करते श्री राम के वंशजों की , किन्तु सदियों से श्री राम बेघर , प्रहरियों के मध्य , बुराइयों के मध्य अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं । मर्यादित , सहिष्णुता का आचरण न्याय व्यवस्था का ध्यान नहीं खीचता । श्री राम के वंशज जब अधीर होते हैं तो आंदोलित होकर विरोध जता देते हैं ।
कितनी बार अयोध्या की धरती रक्त रंजित हुई , किन्तु , राम लला पर न्याय की तलवार हमेशा की तरह लटकी रही । न्याय के स्रोत राम आज न्याय के लिए दर –दर काल की ठोकरें खा रहें हैं ।
जन मानस को आज भी विश्वास है कि अच्छाई अवश्य जीतेगी , श्री राम को न्याय अवश्य मिलेगा , किन्तु , तब तक बुराई अपनी पराकाष्ठा पार कर चुकी होगी । अत्याचार , अनाचार , हिंसा , छद्म कुटिल व्यवहार का वर्चस्व बना हुआ है । उसमें रामलला एक मात्र टिमटिमाते दीप हैं जो इन झंझावातों में भी सत्य , मर्यादा , नैतिकता , अच्छाई का प्रतीक बन कर जल रहे हैं , और जन मानस को अत्याचारों , बुराइयों से लड़ ने की सीख दे रहे हैं ।
रामलला का बचपन माँ भारती कि गोद में भले सुखद रूप से गुजरा हो , किन्तु उनके प्रतीक रूप में रामलला के प्रति दुर्व्यवहार , कुटिल राजनीति , न्याय व्यवस्था का अप्रासंगिक होना खून के आँसू रुलाता है । हमारी पौराणिक विरासत , सांस्कृतिक एकता के प्रतीकों के प्रति इस प्रकार की निष्ठुरता अनुचित प्रतीत होती है
न्याय व्यवस्था को समाज में अच्छाई को प्रतिष्ठापित करने हेतु आस्था के इस मंदिर को पुन : जागृत करना होगा । अगर मंदिर शब्द की पवित्रता अक्षुण करनी है तो न्याय के मंदिर , विद्या के मंदिर , चिकित्सा के मंदिर आदि मंदिर शब्द की गरिमा सुरक्षित करनी होगी , अन्यथा मंदिर शब्द कुटिल षडयंत्र का शिकार होकर , वैसे ही अपनी गरिमा खो देगा जैसे ईमान , नैतिकता , मर्यादा , सु आचरण आदि शब्दों के मूल्यों का क्षरण हुआ है ।
यह प्रश्न मन में कौंधता है कि जब नैतिकता , मर्यादा , ईमानदारी नीयत जैसे शब्द अप्रासंगिक हो चुके हैं तो रामलला जो इनसब मूल्यों के प्रतीक हैं , कैसे प्रासंगिक रह सकते हैं। हमारे समाज कि यही विडम्बना है ।
कब तक श्री राम बेघर रहेंगे । वे कब प्रेरणा श्रोत बन कर समाज की आस्था , शौर्य , विजय , नैतिक मूल्यों का नेतृत्व कर जन मानस के हृदय में आनंद की वर्षा करेंगे ,समाज प्रतीक्षा कर रहा है ।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,
सीतापुर , 24-02-2019