बेगैरत
डा० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
बेगैरत
चलो आज फिर से किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के उसे बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये ||
मुझसे मत करा करो शिकायत अपनी महबूब की
भीतर का मसला है अपने ही घर में निबटाया जाये ||
चलो आज फिर से किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के उसे बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये ||
मुझसे मत करा करो शिकायत अपनी महबूब की
भीतर का मसला है अपने ही घर में निबटाया जाये ||
वो जो कभी अपना सा था आज पराया हो गया
किसी ने सुई चुभोई नही, दर्द बिना लिखना भूल गया ||
मैं खामोश था अंदर से तब बाहर बहुत शोर था
आज मेरे अंदर शोर मचा रहा है तो सब मंजर खामोश है ||
मेरे शहर के रास्तो ये तुमको क्या हुआ
किसी गुस्ताख की गुस्ताखी की मुझको क्यू दी सजा ||
दर्द लेकर जिगर में सकून वाला यार चाहिये
अजीब नादान हो मौला बिना हकीम के शिफा चाहिये ||
वायदा खिलाफत के अब हमको भी खिलाफ जाना चाहिए
जो जेहर भरते हैं दिलों में उनका भी यही हश्र तो चाहिए ||
आशिकी से आशिकी मिल सके जरुरी नही जनाब
इस अबोध का इश्क भी तो कोई रंग लाना चाहिए ||
चलो आज फिर से किसी हंसते हुये को रुलाया जाये
बिना इरशाद के उसे बे-सुर में कोई कलाम सुनाया जाये ||
मुझसे मत करा करो शिकायत अपनी महबूब की
भीतर का मसला है अपने ही घर में निबटाया जाये ||