बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
-विनोद सिल्ला
प्रत्येक शादी में वर और वधु दोनों पक्ष हर संभव यह प्रयास करते हैं कि शादी का कार्यक्रम सुख-शान्ति से संपन्न हो जाए। दोनों ही पक्ष वैवाहिक कार्यक्रम को अब्दुल्लाओं से बचाना चाहते हैं। लेकिन प्रत्येक शादी में अब्दुल्ला दीवाना हो कर पहुँच ही जाता है। पहुँचता ही नहीं बल्कि अपनी उपस्थित दर्ज भी करवाता है। कभी वह दारू पीकर बेवजह झगड़ा करके दीवाना होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। कभी वह अन्य किसी तरह की उलूल-जलूल हरकत से अपनी दीवानगी के प्रमाण देता। हर बार अब्दुल्ला बेगानी शादी में कुछ न कुछ ऐसा जरूर करता है, जो चर्चा का विषय बने। हरियाणा-पंजाब में तो बड़ी संख्या में महिलाएं भी अब्दुल्ला की भूमिका अदा करती हैं। की महिला तो बेगानी शादी में इतनी दीवानी हो जाती हैं। पूरे गाँव या मुहल्ले में बता कर आएंगे फलां की शादी में दहेज ये दिया, वो दिया। फलां ने कुछ भी नहीं दिया। उनकी बहू यह लाई, उनकी बहू वह लाई। उनकी शादी में यह हुआ। उनकी शादी में वह हुआ। जो पहाड़ का राई और राई का पहाड़ बना कर ही दम लेती हैं। इनकी भी अपने कानाफूसी के कार्य के प्रति दीवानगी भी हद दर्जे की होती है। आज अब्दुल्लाओं के बारे में ही चर्चा करेंगे। जो बेचारा प्रत्येक शादी को चर्चा में लाने के लिए हर संभव प्रयास करता है।
आमतौर पर कहा और सुना जाता है कि जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी? शादी वर-वधु का बेहद निजी मामला होता है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति काजी बन कर निर्णय सुनाने लगता है। भले ही मीयां-बीवी राजी हों अब्दुल्ला तो राजी नहीं। इसलिए ही वह जब से शादी की व्यवस्था प्रचलन में आई है, तब से दीवाना हो कर हाए तौबा कर रहा है। अब्दुल्ला सबसे पहले वर-वधु के धर्म की जांच पड़ताल करता है। दोनों एक ही धर्म-मजहब से ताल्लुक हैं तो, उनकी जाति की पड़ताल की जांच पड़ताल की जाती है। दोनों सजातीय हैं तो उनकी उम्र, क्षेत्र, भाषा व नागरिकता पता नहीं क्या-क्या जांचा जाता है? प्रत्येक अब्दुल्ला ने अपने-अपने मापदण्ड तय कर रखे हैं। प्रत्येक की अपनी-अपनी कसौटी है। जिस पर दुनियाभर के लोग परख लिए जाते हैं। नहीं परख पाता तो सिर्फ अब्दुल्ला स्वयं को परख नहीं पाता कि दीवाना क्यों?
IAS की परीक्षा में टीना ढाबी ने प्रथम रैंक प्राप्त किया तो वह चर्चा का विषय बनी। उसके बाद वह फिर चर्चा का विषय बनी। जब उसने IAS की परीक्षा में दूसरा रैंक प्राप्त करने वाले मुस्लिम युवक से शादी की। कुछ अब्दुल्ला तो धर्म का चश्मा लगाकर हाए-तौबा कर रहे थे। बाकी के जाति का चश्मा लगाकर। उसके बाद फिर वह चर्चा का विषय बनी। जब उसका अपने पति से अलगाव हो गया। जब उसने दूसरी शादी की तब भी चर्चा का विषय बनी। अब अब्दुल्ला वर-वधु की आयु को लेकर हाए-तौबा कर रहे थे। जबकि टीना ढाबी का प्रथम शादी करना, प्रथम पति से अलगाव, दूसरी शादी अपनी आयु से बड़े अपने वरिष्ठ IAS से करना। सभी उसके निजी फैसले थे। लेकिन फिर भी जाने क्यों अब्दुल्लाओं ने बेवजह अत्यधिक हाए-तौबा की।
सन 2012 में भी अब्दुल्लाओं ने खूब हाए-तौबा की। जब विश्व विख्यात टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने पाकिस्तान के क्रिकेटर सोहेब मलिक से शादी की, तब वर-वधु दोनों ही मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक थे। तब हाए-तौबा विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अबदुल्लाओं ने की। तब हाए-तौबा का विषय था सोहेब मलिक का पाकिस्तानी होना था। हाए-तौबा पर तड़का आयशा ने भी लगाया। जबकि यह निर्णय सोहेब मलिक व सानिया मिर्जा का बेहद निजी मामला था। वर पक्ष और वधु पक्ष ने शादी को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के अब्दुल्लाओं से बचाने के उद्देश्य से वैवाहिक कार्यक्रम तीसरे देश में किया। जहाँ अब्दुल्लाओं का पहुँच पाना मुश्किल था। तो उस समय अब्दुल्लाओं ने हाए-तौबा की रस्म टी.वी. चैनलस पर पहुंच कर पूरी की।
वर्तमान में भी पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और डॉक्टर गुरप्रीत कौर की शादी को लेकर उत्तरी भारत के तमाम अब्दुल्ला पूरी तरह सक्रिय हैं। इस शादी में दोनों परिवार सिख धर्म से संबंध रखते इसलिए धार्मिक मामला नहीं बना पाए। दोनों परिवार सजातीय हैं। जाति का मामला नहीं बना पाए। अब्दुल्लाओं ने भगवंत सिंह मान की आयु को मुद्दा बना लिया। जबकि शादी का मामला भगवंत सिंह मान और डॉक्टर गुरप्रीत का बेहद निजी मामला है। ऐसे मुबारक मौके पर वर-वधु को देनी तो मुबारकबाद चाहिए।इस अवसर पर अब्दुल्ला को दीवाना होने का कतई हक नहीं। लेकिन अब्दुल्ला है कि मानता ही नहीं। वह दीवाना हो कर हाए-तौबा कर रहा है।
प्राचीन समय में बहुत सी शादियाँ हुई। जिन पर उस समय अब्दुल्ला दीवाना नहीं हो पाया। वर्तमान में अब्दुल्लाओं को इस बात का अफसोस है कि वे उस समय पैदा क्यों नहीं हुए? अगर उस समय पैदा होते तो अकबर-जोधा की शादी पर जमकर हाए-तौबा करते। इंदिरा गांधी व फिरोज, राजीव गांधी व सोनिया गांधी और प्रियंका-राबर्ट वाड्रा की शादी पर भी अब्दुल्ला अब तक हाए-तौबा मचा रहे हैं। अब्दुल्ला इलैक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिंट मिडिया तो कभी साहित्य लेखन में। जहाँ उसका मौका लगता है। डटकर हाए-तौबा मचाता है। जो कतई ठीक नहीं। अब्दुल्ला अपनी सोच बदल। इक्कीसवी सदी से कदम-ताल मिला। सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी बहुत पीछे छुट चुकी है। तू कलैंडर बदलता-बदलता स्वयं को बदलना भूल गया। अब खुद को बदल। हाए-तौबा छोड़कर सकारात्मक बात कर। सकारात्मकता ही कल्याणकारी है। अब्दुल्ला थोड़े कहे को अधिक समझना। अलविदा।
-विनोद सिल्ला
771/14, गीता कॉलोनी
नजदीक धर्मशाला
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद हरियाणा 125120