बेखबर
तुम्हें अहसास नहीं मेरे होने
का
कोई मलाल नहीं मुझे खोने
का
जब भी सोचा मैंने अब बदल
गया है तू,
एक नया बहाना दिया तूने
मुझे रोने का।
इश्क़ के अहसासों को तूने
इस कदर मारा है,
इंतजार रह गया मौत की
नींद में सोने का।
इतना बेखबर कोई कैसे हो
सकता है,
अहसास होता नहीं तुझे अब
नश्तर चुभोने का।
कोई कितना सहे ओर फिर
जिये खुशी से,
हर रोज का किस्सा बना अब
ज़िंदगी ढोने का।
न जाने कैसे जिंदा रहते हैं लोग
अहसासों को दफन कर,
ये तो करिश्मा है चलती साँसों
से कब्र तक जाने का।
सीमा शर्मा