बेखबर हम और नादान तुम
दोस्त ईमानदारी बहुत बड़ा शौक है इसे हर कोई नहीं पाल सकता, कहने और बनने में तो हर कोई ईमानदार कह और बन सकता है परन्तु उसकी हकीकत उनकी हरकतों में झलक ही जाती है,
ताज्जुब किया करते थे जो लोग, कभी दूसरे के कुकर्मो पर,
आज वे भी वही कर्म करने लग गए,
सब कुछ हो रहा था उनकी आँखों के सामने, फिर भी वो मूक दर्शक से बन गए,
फिर सोचा, कि शायद उन्हे न पता हो, काली करतूतों का,
देखा कुछ ऐसा, कि वे उसी सरगने का सरताज बन गए,
रोकना चाहा उन्हे, कुकर्मो के हिसाब बताकर,
इस चक्कर में बेखबर हम ही गुन्हेगार हो गए…… My new book ” बेखबर हम और नादान तुम “