बेकार ही रंग लिए।
बेकार ही रंग लिए तुमने अपने हाथ हमारे खून से।
मांग लेते हमसे हमारी जान तो हम दे देते सुकून से।।1।।
तुम हमेशा ही बस गुर्बत का बहाना बना देते हो।
गर इंसा ठानले तो सब पा जाता है अपने जुनून से।।2।।
हर दिल का अहसास जुदा होता है यूं इंसानों में।
यहां रीति रिवाज ना चलते है किसी भी कानून से।।3।।
तुम यूं ही सफर में चलते रहना थोड़ा-थोडा सा।
यूं ज्यादा दूर ना हो अब तुम मंजिल ए मकसूद से।।4।।
कतरा कतरा जमा करके उसने बनाया है ये घर।
जहां में समन्दर बना है पानी की एक-एक बूंद से।।5।।
जादू सा हुनर है उसके पास सब पे लिखने का।
यह अल्फाज़ ही उसकी आवाज़ है हर मजमून पे।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ