बेकरार
नजरें टिकी हैं
द्वार पे
बेकरार धड़कने हैं
शाम से ।
लगता नही मन
काम मे
बदहवास आलम है
शाम से ।
निखरा है नूर
चेहरे पे
पायल खनक रही है
शाम से ।
लौट के आयेगा कोई
बरसों मे
मचले हुए अरमान है
शाम से ।
Raj K. Vig 12.06.2020
नजरें टिकी हैं
द्वार पे
बेकरार धड़कने हैं
शाम से ।
लगता नही मन
काम मे
बदहवास आलम है
शाम से ।
निखरा है नूर
चेहरे पे
पायल खनक रही है
शाम से ।
लौट के आयेगा कोई
बरसों मे
मचले हुए अरमान है
शाम से ।
Raj K. Vig 12.06.2020