बेईमान बाला
ओ काले दिल वाली सजनी, मन है तेरा काला
झूठी तेरी कंठी है, झूठी तेरी माला
हरदम ओढ़े है फरेब तू, छल को तन में ढाला
झूठी तेरी बातें हैं, झूठ है निराला
धोखों को जिंदगी सौंप दी
छल–प्रपंच में बड़ी सधी तू
मृषा–प्रहर की मिथ्या सी तू
झूठे–सच की एक सदी तू
झूठी तेरी काली रातें, दिवस राख और ज्वाला
बेमानी बातों की तू, बेईमान सी बाला
झूठे जाम का प्याला लेकर
साकी बन छलकाती है
अनट–उपद्रव पायल बाँधे
पाँवों को झनकाती है
अनृत मधु सी है तू, अविद्यमान मधुशाला
नशा जो तेरा झूठा है, आधारहीन है शाला
कूटनीति का डमरू लेकर
डम–डम जो तु बजाती है
निराधार पुष्पों की माला
डाल गले हर जाती है
कपट जाल के फेरे बुनकर, भँवर घुमाती आला
बातिल से सपनों में तूने, ब्याह रचा जो डाला
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*यह मेरी स्वरचित रचना है
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