बूढ़े पिता का दर्द
हिंदी विकास मंच
धनबाद,झारखंड,भारत
मुझे पता है मेरे बेटे
तू मेरा नहीं
अपने बीबी बच्चों का दीवाना था,
फिर भी तुम्हें एक बार तो
अपने माँ-पिता से मिलने आना था।
लोग हँसेंगे बाते बनायेंगे।
जी भर के खरी – खोटी सुनाएंगे।
हम चार दिन के मेहमान हैं।
मत भूलो, हमसे ही तुम्हारी पहचान है।
कितना नाम और पैसा कमाना है?
मत भूल, मरने के बाद सब यहीं छोड़ जाना है।
कई दिनों से ढ़िबरी नहीं जली
क्या पता, माँ-पिताजी भूखे हों।
जिन आँखों ने तुम्हें संसार दिखाया,
क्या पता,उनकी कमजोर हो गई आँखें हों।
छत टपक रही है,
दामन माँ का भीग रहा है।
ठंड में ठिठुर, शरीर पूरा काँप रहा है।
सुबह शाम एक ही आस,
कब आएगा लाल मेरे पास। जाड़े में कब लाएगा माँ-पिता के लिए गर्म कपड़े और शॉल।
पिता ने फ़टे- पुराने पहन जीवन गुजारा है।
माँ खुद भूखी रह,
तुम्हें अपने खून से सँवारा है।
मन पोते – पोतियों से खेलने का है,
पर तुमने उसे मोबाइल की लत लगाई है।
बूढ़ा कहकर दूर भागता
न जाने कैसे संस्कार सिखाएँ हैं।
मुझ पर हो रहे सितम
चुपचाप मुझे सहने होंगे।
आत्मा छोड़ रही है साथ
शायद मुझे अब जाना होगा।
यूँ ही गर तड़प कर मर गया,
तुम जीते जी पछताओगे।
जिस दिन तुम्हें एहसास होगा अपनी ग़लती का,
खुद को क्या मुँह दिखलायोगे।
राज वीर शर्मा
संस्थापक सह अध्यक्ष
हिंदी विकास मंच