‘बूढ़ा गुलाब’
‘बूढ़ा गुलाब’
मैं गुलाब हूँ!
कभी मुझमें भी रंगत थी,
संग दुनिया की संगत थी।
लोग मरा करते थे मेरे रूप रंग पर,
दिल लुटाया करते थे मेरी सुंगध पर।
मेरी छुअन से गुदगुदा जाता था तन,
मेरे दर्शन से प्रसन्न हो जाता था मन।
मुझे घोल-घोलकर पी जाया करते थे,
अपनी काया की तपन बुझाया करते थे।
अब मुझमें न वो रूप है न रंग है,
अब न मुझमें बची कोई सुगंध है।
आज बस दुनिया से बिखरने का इंतजार है,
मैं हूँ बूढ़ा गुलाब! मुझ से दूर आज सारा संसार है।