बूढा बरगद है कहाँ,
हरियाली को खा रहे,पत्थर होते गाँव !
बूढा बरगद है कहाँ,गायब पीपल छाँव !!
————————————-
पशु-पक्षी सब ढूंढते,रहने को आवास !!
हरियाली ने ले लिया,जंगल से सन्यास!
———————————
झुरमुट पेड़ों के गए,है कंकरीट की भीड़ !
उड़ते पंछी खोजते,रहने को अब नीड़ !!
————————————–
आँखों को अब है नहीं,रंगो की पहचान !
बिन पत्तों औ फूल के,घर सब रेगिस्तान !!
————————————-
गुलदानों में है सजे,अब कागज़ के फूल !
खुश्बू के बदले भरी, है अंदर तक धूल!!