बूँद-बूँद से बनता सागर,
बूँद-बूँद से बनता सागर,
सीप-सीप से मोती
सबकी ही पहचान यहांँ पर,
गुण-अवगुण से होती
बचें बुराई से हरदम ही,
नेक राह अपनायें
पायेंगे सम्मान अगर हम,
काम सभी के आयें
– महावीर उत्तरांचली